
आज मुंबई में एक साल पहले हुए विनाशकारी तांडव की बरसी है. आज फिर कुछ आँखे नम होंगी , आज फिर कुछ दिलों में दर्द होगा , आज फिर से कुछ सहमेगा, आज फिर कुछ सड़कें वीरान होंगी , आज फिर उस समंदर की लहरें तेज़ होंगी , आज फिर वो पक्षी फडफड़ाएंगे , आज फिर बन्दुक की गोलियों की आवाज़ कानों में गूंजेगी ....... सब कुछ थाम देने वाला वो मंज़र सिर्फ कुछ नहीं बल्कि हर एक सिने में पैदा होगा . आज फिर हम उन शहीदों को यद् करेंगे , फिर कुछ मोमबत्तियां जलाएंगे और ये सोच कर अपने घर में चुप चाप जाकर सो जायेंगे की हम बच गए . लेकिन ऐसी सोच वाले लोगों से मै पूछता हूँ की कब तक ?
कब तक हम अपनी समस्याओं को लेकर यू ही हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहेंगे ...... कब तक? कब तक ये लोग हमें ऐसे ही मारते रहेंगे और हम सहते रहेंगे . कब तक ?....
अब एक और सवाल मन में उठता है की आखिर हम कर भी क्या सकते हैं ...? हम सिर्फ राजनिति को, अपनी सरकार को, और पाकिस्तान को गली दे सकते हैं.... और घर पर बैठे चाय की चुस्कियों के साथ कहते हैं कि इस देश का कुछ नहीं हो सकता ... उस वक़्त हम सही होते हैं सच मुच इस देश का कुछ भी नहीं हो सकता . जिस देश कि जनता हम जैसी हो उसका सच मुच कुछ नहीं होने वाला.
आखिर क्यों हर बार हम ही निशाने पर होते हैं , आखिर क्यों कोई भी सिर्फ हमारी ही ज़मीन पर नज़र डालता है, इसका जवाब है मेरे पास .........
क्यों कि हम सोचते हैं कि भगत सिंह तो पैदा हों लेकिन पडोसी के घर में हो . मेरे घर में नही , सरहद पर जो दुश्मनों से लड़े वो मेरा बेटा न हो , ....
जब तक हम अपनी इस सोच को नहीं बदलेंगे तब तक मुंबई हमलों जैसे हादसे हमें झेलने पड़ेंगे. ये देश जितना politicians का है उतना ही मेरा भी है इस सोच को लेकर हम कदम उठाये तो शायद मुंबई हमलों के शहीदों कि आत्माओ को सच्ची श्रधान्जली होगी .