Monday, February 1, 2010

संघ से प्रेरणा ले राजनैतिक पार्टियाँ

पिछले दिनों "हिंदी बनाम मराठी ", "महाराष्ट्र बनाम उत्तर भारतीय " का मुद्दा भयंकर चर्चाओं का केंद्र रहा। चाहे राज्य सरकार हो या केंद्र सरकार अपने ढुलमुल रवैये से न तो इस समस्या का कोई समाधान ढूंड पाई और न ही शिव सेना और मनसे के खिलाफ कोई कठोर कार्यवाही । वास्तव में शिवसेना और मनसे में मराठी प्रेम जताने की एक बद्दी होड़ लगी है । इस होड़ में जो आगे रहेगा सत्ता की भूख वो ही शांत कर पायेगा । और कांग्रेस इस लिए चुप है की कहीं कोई बात बिगड़ गई तो राज्य सरकार पर आंच आ सकती है तो उत्तर भारतीय मरते हैं तो मरे , पिटते हैं पिटे .... दो चार पीटेंगे उसके बाद सब शांत हो जायेगा ... सरकार का ये रवैया निहायत ही स्वार्थी और अनैतिक है ।
जहाँ शिवसेना हिंदुत्व का दम भरते नही थकती थी वो शिवसेना शायद भूल गई है की वसुधैव्कुतुम्ब्कम और अतिथि देवो भव: इसी हिंदुत्व की देन हैं ... ऐसे में क्या शिवसेना सही हिंदुत्व की तरफ बढ़ रही है मै यहाँ शिव सेना का ज़िक्र इस लिए ज्यादा नही करूँगा क्यों कि शिवसेना का ये कुकृत्य तो जग जाहिर है इसकी सजा तो उसे अवश्य ही मिलनी चाहिए । लेकिन कुछ परदे के पीछे के गुनेह्गारों के बारे में बताना ज़रूरी समझता हूँ ... इन गुनेह्गारों में कांग्रेस के साथ साथ भाजपा भी उतनी ही ज़िम्मेदार है क्यों अभी भी उन नरभक्षियों के साथ गठबंधन जरी है ... अखंड भारत की बात करने वाली भारतीय जनता पार्टी अब तक क्यों चुप है ... ये भी स्वार्थीपन की हद है .... इस पुरे मसले पर यदि कहीं कोई उम्मीद की किरण जगी तो वो समय था जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहन राव भागवत ने अपने स्वयंसेवकों को उत्तर भारतियों की रक्षा करने का निर्देश दिया और एक बार फिर बता दिया की संघ ही एक मात्र ऐसा संगठन है जो सिर्फ राष्ट्र हित के बारे में सोचता है ... गलतियाँ हर किसी से होती है लेकिन संघ ने इस बार ये ज़ाहिर कर दिया कि एक राष्ट्र का स्वप्न जो वो लेकर चले थे उस बीच में यदि कुछ अपने भी आये तो हम उनकी भी परवाह नही करेंगे । उम्मीद कि इस किरण के रूप में उभरे सरसंघचालक जी के लिए श्रद्धा से सर झुक जाता है । उन्होंने जाता दिया कि हम एक हैं .... भले ही संघ कि स्थापना महाराष्ट्र में हुई हो , भले ही स्वयं मोहन राव भागवत महाराष्ट्रियन हों लेकिन राष्ट्रहित सर्वोपरी है , जो लोग ये मानते हैं कि संघ एक मराठी संगठन है लेकिन ये बयां उन्हें इस बात का सही जवाब देता है । संघ के प्रथम सरसंघचालक डॉ हेडगेवार मराठी थे , द्वितीये सरसंघचालक श्री गुरु जी का जन्म तमिलनाडु में हुआ था , तृतीये सरसंघ चालक श्री देवरस जी भी मराठी थे , चतुर्थ सरसंघचालक श्री रज्जू भैया उत्तर प्रदेश के रहने वाले थे , निवर्तमान सरसंघचालक श्री सुदर्शन जी कर्नाटक के रहने वाले थे और वर्तमान सरसंघ चालक फिर महाराष्ट्र से हैं लेकिन उनके लिए मराठी होना बड़ी बात नही बल्कि भारतीय होना बड़ी बात है ... सरसंघचालक जी के उत्तर भारतियों के पक्ष में दिया गया बयान निश्चित तोर पर बड़ी प्रशंसा का पात्र है और देश के बड़े बड़े राजनैतिक व्यक्तित्वों को मोहन राव भागवत जी से प्रेरणा लेकर एक राष्ट्र को लेकर सोचना चाहिए....